हमारे देश में बरसों से जातियों , धर्मों और भाषाओं की दीवार तोड़ने की राजनीति हो रही है। लेकिन हर चुनाव में एक नई दीवार खड़ी हो जाती है। आंध्र प्रदेश में जगनमोहन रेड्डी सीएम बने तो कानून बना दिया कि आंध्र प्रदेश की प्राइवेट कंपनियों में राज्य के लोगों के लिए ७५ फीसदी नौकरियां आरक्षित होंगी। वहीं महाराष्ट्र हो या हरियाणा या फिर झारखंड जहां चुनाव आते है, राजनीतक दलों की ओर से युवाओं को नौकरी में स्थानीय आरक्षण का वादा करना नई सियासी रणनीति बनती जा रही है। राजनीति दलों द्वारा ये क्षेत्रीय भावना को उभारने की नीति है या देश में बढ़ती बेरोजगारी को अंकित करने का संदेश। लेकिन राजनीति का नया ट्रेंड ऐसे ही जारी रहा तो इसके असर से देश में युवाओं के लिए एक दीवार खड़ी हो जाएगी।
देश में रोजगार की हालत बहुत खराब है और न ही किसी प्रदेश में नौजवानों के लिए नौकरी है। नौजवान बस रोजी-रोटी की गारंटी चाहते हैं। राष्ट्रवाद की नई अवधारणा में देश के भीतर कई देश बनने वाले हैं और इसकी शुरूआत हो भी चुकी है। झारखंड में स्थानीय युवाओं को नौकरी में कोटा देने का तो हेमंत सोरेन की अगुवाई में जेएमएम-कांग्रेस ने वादा भी कर दिया। सरकार बनती है तो राज्य की नौकरियों में वहां के युवाओं को ७५ फीसदी आरक्षण दिया जाएगा। ऐसा नहीं है कि यह पहली मिसाल है। हाल में हुए महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव में ऐसा ही वादा चुनावी मुद्दा बना था और वहां बनी नई सरकार इसे अमल में लाने का ऐलान भी कर चुकी है। 
कुछ महीने पहले सड़कों के रास्ते सीएम की कुर्सी तक पहुंचने के बाद करिश्माई नेता के तौर पर उभरने के तमगे के साथ ही अति उत्साह में आंध्र के सीएम जगन मोहन रेड्डी ने तो इसको लेकर बकायदा कानून ही बना डाला कि आंध्र प्रदेश के लोगों को निजी कंपनी में आरक्षण मिलेगा। आंध्र प्रदेश की कंपनियों के लिए यह जरूर है कि वो ७५ फीसदी भर्तियां स्थानीय लोगों की करें और कुशल श्रमिक न मिले तो अकुशल श्रमिकों को ट्रेनिंग दें और फिर नौकरी पर रखें। कंपनी ये बहाना नहीं बना सकतीं कि हमें आंध्र प्रदेश में काबिल लोग नहीं मिले इसलिए बाहर के लोगों को रख दिया। मतलब २५ फीसदी में बिहार से रख लीजिए, मणिपुर, बंगाल, महाराष्ट्र से रख लीजिए या इंग्लैड, अमेरिका और जर्मनी वाला रख लीजिए।
बेरोजगारी से जुड़े कुछ आंकड़ों पर भी नजर डाले तो नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस की २०१७ की रिपोर्ट के अनुसार - ११.४ फीसदी के साथ सबसे अधिक बेरोजगारी दर वाला राज्य केरल है। ८.६ फीसदी के साथ हरियाणा का स्थान दूसरा है। ८.१ फीसदी के साथ असम तीसरे स्थान पर है। ७.८ फीसदी के साथ पंजाब चौथे और ७.७ फीसदी के साथ झारखंड पांचवें नंबर पर है। तमिलनाडु में ७.६ फीसदी और उत्तराखंड में ७.६ फीसदी की बेरोजगारी दर है।बिहार में बेरोजगारी दर ७.२ फीसदी है। ओडिसा में ७.१
अगर इन आंकड़ों पर गौर करें तो इसका उस राज्य के अंदर रोजगार की स्थिति से कोई मतलब नहीं है। क्योंकि सबसे अधिक बेरोजगारी दर वाला राज्य केरल है, लेकिन वहां इस तरह की न मांग उठी है न अब तक किसी सियासी दल का ध्यान ही उस ओर गया है। लेकिन वहीं ऐसे राज्य जहां बेरोजगारी की दर दूसरे राज्यों के मुकाबले कम रही है वहां के सियासी दल ने या वहां की सरकार ने क्षेत्रीय वाला प्रावधान किया।
संविधान द्वारा सामाजिक शोषण के कारण पिछड़ चुकी जातियों के लोगों को समान स्तर पर लाने के लिए जो व्यवस्था दी गई थी वो पीछे छूटती जा रही है। निजी क्षेत्रों में जातीय आरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है। जबकि स्थानीय आरक्षण के लिए कानून बन रहे हैं। निजी शिक्षण संस्थानों के दाखिले में कोई जातीय आरक्षण नहीं हैं। गौर कीजिए जब मध्य प्रदेश में कमलनाथ की सरकार बनी थी तो उन्होंने पहले ही दिन घोषणा कर दी थी कि मध्य प्रदेश में काम करने वाली कंपनियों को स्थानीय नौजवानों को प्राथमिकता देनी होगी। 
ऐसे में ये सवाल उठ रहे हैं कि कोई भी दल क्षेत्रीय युवाओं को नौकरी में आरक्षण की ओर आक्रामक रूप से क्यों आगे बढ़ रहा है और इसका असर क्या पड़ेगा। यह एक ऐसा मुद्दा है जो आने वाले दिनों में तेजी से अन्य राज्यों में भी पांव पसार सकता है। अगर ऐसा हुआ तो ऐसे समय में जबकि एक देश- एक कानून की बात हो रही है, युवाओं को अवसरों के लिए एक क्षेत्र विशेष तक बांधने की इस सियासी कोशिश के बहुआयामी नतीजे सामने आ सकते हैं। महाराष्ट्र में तो सत्तारूढ़ शिवसेना और राज ठाकरे की नव निर्माण सेना का पूरा अस्तित्व ही मराठी अस्मिता पर टिका हुआ है। अब जरा कल्पना कीजिए की स्थानीय आरक्षण माडल भारत के सभी राज्यों पर लागू हो जाए तो बेंगलुरू में बिहार के लोगों को नौकरी नहीं मिले, चेन््नाई में चतरा के लोगों को नौकरी न मिले, मुंबई में मेरठ के लोगों को नौकरी न मिले और दिल्ली में देहरादून के लोग नौकरी के लिए हाथ मलते रह जाएं। तो एक भारत का नारा केवल राजनीति में सिमट कर रह जाएगा। भारत को एकता के सूत्र में पिरोकर एक भारत श्रेष्ठ भारत का सपना पूरा करने की कोशिश में लगे प्रधानमंत्री मोदी के सपनों का क्या जब राज्यों की सरकारों द्वारा ही क्षेत्रियता के नाम पर युवाओं के बीच दीवारें खड़ी की जा रही हैं।

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