भारत को वैश्विक आर्थिक महाशक्ति बना देने वालों की नींद अब टूटनी चाहिए। जिस युवा जनसंख्या के बूते इक्कीसवीं शताब्दी को भारतीय युवाओं की शताब्दी होने का दंभ भरा जा रहा है, उसके साथ ही देश में खड़ी शिक्षित बेरोजगारों की फौज ने आइना दिखा दिया है। किसी भी विकासशील देश के लिए यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि उसकी युवा पीढ़ी उच्च शिक्षित होने के बावजूद आत्मनिर्भरता के लिए चपरासी जैसी सबसे छोटी नौकरी के लिए लालायित है। बेरोजगारों की इस फौज ने दो बातें एक साथ सुनिश्चित की हैं। एक तो हमारे शिक्षण संस्थान समर्थ युवा पैदा करने की बजाय,ऐसे बेरोजगारों की फौज खड़ी कर रहे हैं, जो योग्यता के अनुरूप नौकरी की लालसा पूरी नहीं होने की स्थिति में कोई भी नौकरी करने को तत्पर हैं। दूसरे,सरकारी स्तर की छोटी नौकरियां तत्काल भले ही पद व वेतनमान की दृष्टि से महत्ववपूर्ण न हों,लेकिन उनके दीर्घकालिक लाभ हैं।
           पिछले माह में बेरोजगारी दर राष्ट्रीय स्तर पर ८। ५ प्रतिशत हो चुकी है जो विगत तीन वर्षों में सबसे ज्यादा है। किन्तु मंदी की वजह से उसके प्रभाव को महसूस नहीं किया जा रहा है, इसी का परिणाम है कि जहाँ देखो देश में बेरोजगारों की फ़ौज खड़ी होती जा रही है। बेरोजगारी को आधार बनाकर जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी तथा पंजाब सेन्ट्रल यूनिवर्सिटी आदि ने १५ से २९ वर्ष के युवाओं को मिलने वाले रोजगार पर अध्ययन किया तथा अपने रिसर्च में पाया कि इस आयु वर्ग में २००४-२००५ के बीच ८।९ मिलियन यानि लगभग ८९ लाख युवा बेरोजगार थे वहीँ २०११-१२ में इनकी संख्या बढ़कर ९० लाख हो गई। चिंता का विषय यह है कि यही आँकड़ा २०१७-१८ में २।५ करोड़ पर पहुँच गया। सबसे सोचनीय उत्तर-प्रदेश राज्य है जो बेरोजगारी में एक नंबर पर चल रहा है, जहाँ अकेले ३० लाख युवा बेरोजगारी का शिकार हैं। हालाँकि शिक्षा की दर में वृद्धि हुई है किन्तु शिक्षित अभ्यथिNयों की तुलना में रोजगार का सृजन नहीं हो पा रहा है।
वर्तमान समय में कृत्रिम बुद्धिमत्ता, ऑटोमेशन व रोबोटिक्स आदि आधुनिक तकनीक से होने वाले बदलावों व बढ़ती जनसंख्या ने रोजगार प्रणाली और व्यवस्था को बदल कर रख दिया है। युवाओं को रोजगार प्राप्त करना दूर की कौड़ी ही साबित होता रहेगा। कम्प्यूटर प्रणाली व ऑटोमेशन से रोजगार के अवसर कम हो रहे है तथा शिक्षा प्रणाली में आमूल चूल परिवर्तन की मांग तेज होती जा रही है ताकि शिक्षित युवा डिग्रियों के साथ साथ पर्याप्त कौशल भी प्राप्त कर सकें जो उन्हें गरिमापूर्ण जीविका प्राप्त करने के लायक बना सके यानी वह पूरी तरह से रोजगार के योग्य हों। देश में माना यह जाता है कि शिक्षा से ही ठीक ठाक रोजगार प्राप्त किया जा सकता है, इसलिए सभी को सस्ती व अच्छी शिक्षा दी जानी चाहिए। शिक्षा ग्रहण करते करते भी युवा को रोजगार प्राप्त कर धनार्जन का अधिकार होना चाहिए जबकि भारत में एक दो विश्वविद्यालय इस पर प्रतिबंध लगाते है कि पढ़ाई के दौरान छात्र कोई लाभदायक कार्य करे। गांवों, नगरों व शहारों से आने वाले वंचित व निम्न सामाजिक क्षेत्र के छात्रों को पार्ट टाइम जॉब का अधिकार तो पढ़ाई करते करते होना ही चाहिए जिससे वह जरुरत का खर्च निकाल सके। छात्रों को खाली समय में कुछ अन्य कार्य या पार्ट टाइम कार्य करना चाहिए जिससे वह दंगे, फसादों व अनुशासनहीनता के कार्यों से बच सके। शिक्षा किसी भी समाज में चेतना और सशक्तिकरण का सबसे शक्तिशाली हथियार होता है। वर्तमान समय में भारत में शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन की आवश्यकता महसूस की जा रही है। भारत में अस्सी प्रतिशत से अधिक युवा शक्ति मध्यम वर्गीय या निम््ना वर्गीय परिवारों से आते हैं। वहां पर शीघ्र से शीघ्र नौकरी प्राप्त करने का भारी दबाव सभी पर रहता है। शिक्षा ग्रहण करते समय रोजगार करने से रोकना कतई न्यायसंगत व तर्कसंगत नहीं माना जा सकता है। भारत में एम०फिल०, पी० एच० डी० करते समय छात्रों की आयु २५ वर्ष से भी ऊपर हो जाती है तथा परिवार के दबाव में शादी भी कर लेते हैं जिससे उन पर धन कमाने का दबाव बना रहता है। इस दबाव के कारण उन छात्रों की शोध के प्रति रुचि प्रभावित हो जाती है और शोध का स्तर गिर जाता है। यही कारण है कि एशिया के स्तर तक भी भारत बहुत अधिक शोधकर्ता उत्पन्न नहीं कर पाया है। इस समस्या से निपटने हेतु उच्च शिक्षा व शोध में अच्छी छात्रवृत्ति का प्रबंध सरकार को करना चाहिए अथवा फिर इतनी नौकरियों का प्रबंध करना होगा जिससे ये सभी छात्र इस बात के लिए आश्वस्त हो सकें कि अपनी शिक्षा पूरी करते ही इनके पास उचित रोजगार होगा और इसलिए शिक्षा के दौरान उन्हें रोजगार की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। सरकार के लिए आर्थिक सुधारों को देखते हुए शिक्षा में इस प्रकार का सुधार करना बहुत मुश्किल कार्य है। 'शिक्षा और रोजगार' को 'शिक्षा बनाम रोजगार' में नहीं बदलने देना है। यदि भारत सरकार उच्च शिक्षा और शोध के क्षेत्र में चीन से मुकाबला करना चाहती है तो उसको अपनी पुरानी व्यवस्था व नीतियों में बदलाव करना चाहिए तथा जनसंख्या वृद्धि पर बिना किसी राजनीति किये सभी राजनीतिक दलों को जनसंख्या वृद्धि पर प्रतिबंध करने के लिए आगे आना चाहिए वरना बढ़ती जनसंख्या देश के विकास से लोगों की बढ़ी हुई आय को चट करती रहेगी और बेरोजगारी इसी प्रकार द्रुत गति से बढ़ती रहेगी।

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