२६ जनवरी का पावन दिन हमारे लिए तो यह एक उत्सव के समान है। वस्तुत: २६ जनवरी, १९५० को भारत सम्पूर्ण प्रभुत्ता सम्पन््ना गणराज्य घोषत हो गया था, जबकि इसे अंगीकृत तब से दो माह पूर्व अर्थात २६ नवम्बर, १९४९ को ही कर लिया गया था। २६ जनवरी का दिन एक शौर्य दिवस के रूप में मनाए जाने का दिन है। इसी दिन सन् १९२९ में जब भारत विखंडित नहीं हुआ था, रावी नदी के किनारे अखिल भारतीय कांग्रेस द्वारा सर्वसम्पति से लाहौर अधिवेशन में यह प्रस्ताव पारित किया गया ''पूर्ण स्वराज ही हमारा अंतिम लक्ष्य है'' तब से लेकर इस दिन को स्वराज दिवस के रूप में ही मनाया जाता है। जिन लोगों ने संविधान की रचना की वह अपने समय के महान लोग थे। आजादी के समय जिस महान संविधान के निर्माण का फैसला लिया गया था, जो आदर्श सोचे गए थे, वे सारे इसकी पूर्णता में संविधान के प्राक्कथन में परिलक्षित हो उठे-
 ''हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुसत्ता सम्पन््ना, समाजवादी एवं पंथनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने के लिए समस्त नागरिकों को-
-सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय!
-विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास धर्म और उपासना की स्वतंत्रता
-प्रतिष्ठा के अवसर को क्षमता प्राप्त करने के लिए तथा उस क्रम में व्यक्ति को गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता  सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर आज तारीख २६.११.४९ को एतद्द्वारा इस संविधान को अंगीकृत और आत्ममार्पित करते हैं। यह संविधान का दर्शन है, जो मनुष्य मात्र को सम्पूर्ण गरिमा प्रदान करता है।
भारत हिन्दू बाहुल्य राष्ट्र है लेकिन भारत ने हमेशा अन्य धर्मों के लोगों का सम्मान किया है। यहां मुस्लिम भी हैं, सिख, ईसाई, पारसी, यहूदी भी आए और विशाल राष्ट्र ने उन्हें अपने में सम्माहित कर ​िलया। धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र भारतीय संस्कृति की आधारशिला रही। भारतीय संविधान और लोकतंत्र का सीधा भाव और अर्थ यही है कि भारत का हर नागरिक बिना किसी भेदभाव के एक बराबर है। यही सोच धर्मनिरपेक्षता की मूल भावभूमि है।
यह दिन देश का लेखा-जोखा करने का भी है, जिसमें प्रत्येक नागरिक को बराबर के अपने निजी ​िवकास के अवसर प्राप्त हैं। भारत ने जबरदस्त विकास ​िकया है, एक तरफ हम परमाणु शक्ति हैं, भारतीय सेना नवीनतम प्रौद्योगिकी  से लैस है, भारत आंतरिक्ष में भी ऊंची छलांग लगा चुका है, खाद्यन््ना उत्पादन में भी भारत आत्मनिर्भर है, लगातार औद्यागिक विकास हो रहा है। मध्यम वर्गीय आय घटकों का हम दुनिया में सबसे बड़ा बाजार है। हम दुनिया के २० सर्वाधिक औद्योगीकृत देशों के संगठन जी-२० के सम्मानित सदस्य हैं। यह सारी प्रगति हमने बहुदलीय राजनीतिक सत्ता की व्यवस्था के अन्तर्गत ही की है। यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं है। हमने जो भी ​िवकास किया वह व्यक्ति के निजी सम्मान और उसकी स्वतंत्रता की गारंटी देते हुए किया। इतनी शानदार उपलब्धियों वाले देश में भ्रष्टाचार भी जम कर हुआ और  व्यवस्था के प्रति आक्रोश भी जमकर फूटा। लोगों ने अपनी इच्छा के मुताबिक जब चाहा अपने वोट से सत्ता बदल दी। आज देश के कई हिस्सों में आक्रोश नजर आता है। छात्र कैम्पसों में भी असंतोष है। इस सबके पीछे सियासत है, वोट बैंक की राजनीति है, भ्रम है और व्यवस्था की विगसंतियों के प्रति लोकतंत्र में हर किसी को प्रदर्शन और आंदोलन का अधिकार है लेकिन  इस अधिकार को हिंसा का हथियार नहीं बनाया जाना चाहिए।  पिछले एक वर्ष में सत्ता ने साहसिक और ऐतिहासिक फैसले किए। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद ३७० और ३५ ए खत्म कर राज्य को केन्द्र शासित बना डाला। समूचे राष्ट्र ने इस फैसले का स्वागत किया। अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले को करोड़ों मुस्लिमों के साथ पूरे भारत ने स्वीकार किया, कहीं भी कुछ नहीं हुआ। इतने बड़े फैसले पर सभी ने संयम और धैर्य का परिचय दिया, कोई अनर्गल बयानबाजी भी नहीं हुई। साम्प्रदायिक सद्भाव बना रहा।
देश का लोकतंत्र इतना ताकतवर है कि कोई भी संविधान की आत्मा से छेड़छाड़ नहीं कर सकता। जब भी किसी ने ऐसा ​किया तो लोकतंत्र ने उसे सत्ता से हटाकर पटखनी दी है। अब वक्त आ गया है कि हम अपने संविधान का सम्मान करे और समाज की संगतियों का विश्लेषण भी करे। राजनीतिक स्वार्थ के चलते अलग-अलग आवाजें न उठाएं, जिस ​िदन भारत भारतीय और भारतवासियों की बात करने लगेगा उसी ​िदन साम्प्रदायिकता की आग ठंडी हो जाएगी। आज हर नागरिक को अपना कत्र्तव्य करते हुए एक नए भारत का ​िनर्माण करने और गणतंत्र को मजबूत बनाने का संकल्प लेना होगा।
   भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं और इस दौरान लोगों में लोकतांत्रिक व्यवस्था के प्रति असंतोष भी व्याप्त होता गया। असंतोष का कारण भ्रष्ट शासन और प्रशासन तथा राजनीति का अपराधिकरण रहा। भारत में बहुत से ऐसे व्यक्ति और संगठन हैं जो भारतीय संविधान के प्रति श्रद्धा नहीं रखते।इस अश्रद्धा का कारण हमारा संविधान नहीं है। माओवादी जैसे पूर्वाेत्तर के अन्य संगठन आज भी यदि सक्रिय है तो कारण सिर्फ इतना है कि भ्रष्ट गैर जिम्मेदार राजनीतिज्ञों और अपराधियों के चलते उनका लोकतंत्र से विश्वास उठ गया। लेकिन समझने वाली बात यह है कि लादी गई व्यस्था और तानाशाह कभी दुनिया में ज्यादा समय तक नहीं चल पाया। माना कि लोकतंत्र की कई खामियाँ होती है, लेकिन तानाशाही या धार्मिक कानून की व्यवस्था व्यक्ति स्वतंत्रता का अधिकार छीन लेती है, यह हमने देखा है। जर्मन और अफगानिस्तान में क्या हुआ सभी जानते हैं। सोवियत संघ क्यों बिखर गया यह भी कहने की बात नहीं है। भविष्य में देखेंगे आप चीन को बिखरते हुए।हमें विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश होने का गर्व है। हमारा लोकतंत्र धीरे-धीरे परिपक्व हो रहा है। हम पहले से कहीं ज्यादा समझदार होते जा रहे हैं। धीरे-धीरे हमें लोकतंत्र की अहमियत समझ में आने लगी है। सिर्फ लोकतांत्रिक व्यवस्था में ही व्यक्ति खुलकर जी सकता है ज्यादा समय तक शासन और प्रशासन में भ्रष्टाचार, अपराध और अयोग्यता नहीं चल पाएगी तो हमारे भविष्य का गणतंत्र गुणतंत्र पर आधारित होगा, इसीलिए कहो....गणतंत्र की जय हो।

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