उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य में गिरते नामांकन और शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारने के उद्देश्य से प्राथमिक विद्यालयों के मर्जर (विलय) की योजना शुरू की है। इस कदम के तहत उन विद्यालयों को एकीकृत किया जा रहा है जहाँ छात्र संख्या बहुत कम है, या जो एक-दूसरे से निकटता में स्थित हैं। सरकार का कहना है कि यह कदम शिक्षकों की उपलब्धता बढ़ाने, संसाधनों के बेहतर उपयोग और शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिए जरूरी है। लेकिन इस फैसले को लेकर ज़मीनी स्तर पर कई सवाल और चिंताएं उठ रही हैं, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में।सरकार का तर्क है कि कई सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में छात्रों की संख्या 20 से भी कम है, जिससे एक शिक्षक पर पूरा भार आ जाता है और गुणवत्ता प्रभावित होती है। इसके अलावा, एक ही गांव या मोहल्ले में दो से तीन स्कूलों का संचालन प्रशासनिक दृष्टि से अव्यवस्थित और महंगा भी हो जाता है।
संसाधनों का केंद्रीकरण हो,
शिक्षकों की तैनाती प्रभावी तरीके से हो,
हर स्कूल में न्यूनतम बुनियादी सुविधाएं सुनिश्चित की जा सकें,
और डिजिटल शिक्षा एवं स्मार्ट क्लास जैसी योजनाएं एकीकृत स्कूलों में सरलता से लागू की जा सकें।
हालांकि सरकार की मंशा भले ही सुधारात्मक हो, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में इसके कई प्रतिकूल प्रभाव सामने आ रहे हैं। जब दो या अधिक स्कूलों का मर्जर होता है, तो एक स्कूल को बंद कर दिया जाता है और छात्रों को दूसरे विद्यालय में स्थानांतरित किया जाता है। यह स्थानांतरण बच्चों को 2 से 3 किमी दूर तक चलने को मजबूर करता है, जो कि छोटे बच्चों के लिए मुश्किल होता है।
खासकर प्राथमिक कक्षा (1-5) के छात्रों के लिए यह दूरी एक बड़ी चुनौती बन जाती है। कई अभिभावक अपनी बेटियों को इतनी दूर के विद्यालय में भेजने से हिचकते हैं, जिससे बालिकाओं की उपस्थिति और नामांकन पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है।
विलय के कारण जिन स्कूलों को बंद किया गया, वहां तैनात शिक्षकों का स्थानांतरण कर दिया गया है। कई महिला शिक्षकों को दूरस्थ क्षेत्रों में ड्यूटी दी गई है, जिससे उनके लिए कार्यस्थल तक पहुंचना कठिन हो गया है। यह स्थिति विशेषकर उन शिक्षिकाओं के लिए कठिन है जिनके छोटे बच्चे हैं या जिन्हें परिवहन की सुविधा नहीं है।
शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि स्कूल तक पहुँच (access) उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी कि शिक्षा की गुणवत्ता। अगर स्कूल दूर हो जाए और बच्चे वहाँ न जाएँ, तो भले ही वह स्कूल उच्च गुणवत्ता वाला हो, उसका कोई लाभ नहीं होगा।
"स्कूल गांव में होना चाहिए, गांव स्कूल में नहीं" — यह विचार ग्रामीण शिक्षा के संदर्भ में बिल्कुल उपयुक्त बैठता है।
प्राथमिक विद्यालय केवल शिक्षा का केंद्र नहीं होते, बल्कि वे ग्रामीण सामाजिक ढाँचे का अभिन्न हिस्सा होते हैं। गांव के लोग स्कूल भवनों का उपयोग ग्रामसभा, वैक्सीनेशन शिविर, और अन्य सामाजिक कार्यों के लिए भी करते हैं। स्कूल के बंद हो जाने से यह सामाजिक केंद्र भी निष्क्रिय हो जाते हैं। साथ ही, स्थानीय युवाओं को जो शिक्षक के रूप में अवसर मिलता था, वह भी सीमित हो
विपक्षी दलों और कुछ शिक्षक संगठनों ने इस मर्जर योजना का विरोध किया है। उनका कहना है कि यह योजना बिना व्यापक परामर्श के बनाई गई है और यह ग्रामीण शिक्षा व्यवस्था को कमजोर करेगी। कई जिलों में अभिभावकों और ग्राम प्रधानों ने बंद हुए स्कूलों को दोबारा खोलने की मांग की है।
सरकार का यह दावा कि विलय से गुणवत्ता में सुधार होगा, तभी सार्थक होगा जब यह सुनिश्चित किया जाए कि:
बच्चों को स्कूल तक सुरक्षित परिवहन सुविधा मिले,
स्कूलों में पर्याप्त शिक्षक हों,
हर छात्र को व्यक्तिगत ध्यान मिले,
और स्कूल की दूरी अधिकतम 1 किमी के भीतर रखी जाए।
इसके अतिरिक्त, मर्जर से पहले समुदाय के साथ संवाद आवश्यक है ताकि स्थानीय जरूरतों को समझा जा सके।
उत्तर प्रदेश में प्राथमिक स्कूलों का मर्जर शिक्षा क्षेत्र में एक बड़ा प्रशासनिक निर्णय है। लेकिन यह निर्णय केवल आंकड़ों के आधार पर नहीं लिया जाना चाहिए, बल्कि सामाजिक, भौगोलिक और पारिवारिक वास्तविकताओं को ध्यान में रखकर लागू किया जाना चाहिए। यदि यह योजना ज़मीनी सच्चाई से जुड़कर और पारदर्शिता के साथ लागू की जाए, तो यह शिक्षा प्रणाली को मज़बूत बना सकती है। अन्यथा, यह निर्णय लाखों बच्चों की शिक्षा यात्रा में रुकावट बन सकता है।
"हर बच्चे के पास स्कूल हो, स्कूल तक रास्ता हो और रास्ते में रुकावट न हो" — यही किसी भी शिक्षा नीति की असली कसौटी होनी चाहिए।
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