एक वो समय था ,जब वृक्षों को अपना मित्र , साथी और हमसाया समझा जाता था और उन्हें कटने से बचाने के लिए आंदोलन भी चलाया गया ।ताकि हमारे आस – पास का वातावरण साफ़ , स्वच्छ और पवित्र बना रहे ।हर प्राणी मात्र शुद्ध हवा में साँस ले सकें ।यह उस समय की बात हुआ करती थी । जब मनुष्य परोपकार, मानवता व अहिंसा के गुणों से ओतप्रोत हुआ करता था । विश्व स्तर पर शांति को प्रगति का धोतक माना जाता था ।
किन्तु आज विश्व स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर भी उन्नति की परिभाषा बदल चुकी है मानव – मानव का शत्रु तो बन बैठा है साथ ही पर्यावरण को भी अपनी स्वार्थपरता के चलते अपना दुश्मन बना बैठा है । विश्व स्तर पर अपने आप को शक्तिशाली बनाने हेतु 2019 – 2020 से लेकर आज पर्यन्त जिस जैविक युद्ध की मार सारा विश्व झेल रहा है । वो प्रकृति के साथ शत्रुवत व्यवहार व असीमित दोहन का ही परिणाम है ।
प्लास्टिक जिसका क्षय नहीं हो सकता अपितु उसे जलाया भी जाये तो वायुमंडल में विषैली गैसों का समावेश होने का खतरा होता है यह जानते हुए भी उसका उपयोग किया जाना , प्लास्टर ऑफ़ पेरिस की मूर्तियाँ बनाना ,दस दिन पूजकर समुद्र व नदियों में प्रवाहित करना जिसके कारण समुद्री जीव – जंतुओं का जीवन खतरे में डालना ,वनों को काटकर स्वयं हेतु महल बनाना और वन्य जीवों के रहने के लिए उनके वन समान घर को उजाड़ना ,जिसके चलते आज वे शहरों में अपने लिए बसेरा ढूँढ़ने निकलते है और मानव उनका शिकार बन जाता है । जबकि मनुष्य अगर थोड़ा अपने निज स्वार्थ से ऊपर उठकर अपने साथ ही साथ वन्य और निर्जीव प्राणियों के लिए सोचते हुए जितने वृक्ष एवं वन का उपयोग करता उससे दुगुनी मात्रा में प्रकृति और प्रकृति से जुड़े जीव – जंतुओं के बारे में सोचता तो आज जो स्थिति बनी हुई है शायद न होती और आज पृथ्वी पर प्रकृति और मानव का सम्बन्ध परस्पर सौम्य व सुखदाई होता क्योंकि प्रकृति का नियम है तुम जितना दोगे प्रकृति उसका दुगुना आपको उपहार स्वरूप ममतामयी माँ बनकर लौटा देती है ।
आज जो भी मानव की स्थिति है यह उसकी ही करनी का परिणाम है कि प्राणवायु हेतु वह कृत्रिम प्राणवायु पर आधारित होने पर मजबूर हो गया है और इस स्थिति तक पहुँच गया है कि अब या तब काल का ग्रास बन जायेगा। आज भी अगर मानव प्रकृति के साथ परस्पर सम्बन्ध को सौहार्द पूर्ण एवं मित्रवत बना कर उसका समुचित दोहन करे और उसका ख्याल रखे । तो स्थिति आज भी सुधर सकती है ।वरना प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं है । आज विश्व स्तर पर मनुष्य की स्थिति है ,उससे स्वयं मानव अनभिज्ञ नहीं है इसलिए अब भी मानव सचेत होकर पर्यावरण का संरक्षण एवं संवर्धन के लिए कटिबद्ध होकर प्रण लेले और पूर्ण रूप से अपने कर्तव्यों का पालन करे तो प्रकृति भी अपना रौद्र रूप त्यागकर ममतामयी माँ समान हो मानव पर अपना प्रेम बरसा कर उसे पुनः संपन्न बना देगी ।
✍️©️ Manju Rai Sharma
Mumbai, Maharashtra

एक टिप्पणी भेजें

 
Top