मानव का विकास ही प्रकृति की गोद में हुआ है। जब तक प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग कम स्तर पर होता रहा तब तक प्रकृति में संतुलन बना रहा। लेकिन जैसे जैसे हम लोगों को संसाधनों की ज़रूरत पड़ी वैसे ही प्रकृति असंतुलन होने लगी। हमनें अपनी ज़रूरतों की वजह से पर्यावरण को दूषित कर दिया है। हम सब बड़ी शान से 5 जून को पर्यावरण दिवस मनाते है लेकिन ये भूल गये की क्यूँ मनाते है।
Government panel of climate change  की एक रिर्पोट में कहा गया है कि बीते 50 सालों में जितना हमनें धरती का शोषण किया है उसका सीधा असर धरती का बढ़ता तापमान है। रिर्पोट के आधार पे हम दुख तो प्रकट कर लेते है लेकिन कम से कम अपने शास्त्रों की बाते भी मानते तो आज पर्यावरण खतरे में ना होता। शास्त्रों की माने तो पर्यावरण एवं धर्म का बहुत ही गहरा संबंध है। सभी धर्म के धर्मावलंबियों ने प्रकृति को पुष्पित, पल्लवित एंव प्रफुल्लित रूप से देखने का प्रयास किया है।
जैन धर्म के भगवान महावीर को पर्यावरण पुरूष कहा जाता था और अहिंसा को पर्यावरण संरक्षण का अनूठा विज्ञान। भगवान महावीर का प्रकृति से बहुत गहरा संबंध था। उन्होनें जंगल में जीव-जन्तु ही नहीं एवं पेड़ पौधें के बीच रहकर अपनी साधना की थी और ज्ञान की प्राप्ति भी पेड़ की नीचे हुई थी। इनकी पवित्र पुस्तक में भी प्रकृति को बहुत महत्व दिया है। पुस्तक के अनुसार प्रकृति की दृष्टि में एक पौधे का जीवन भी उतना ही मूल्यवान है जितना एक मनुष्य का जीवन। पेड़ पौधे पर्यावरण को प्रदूषण से मुक्त करने में जितना सहायक है, उतने मनुष्य नहीं है, वो तो पर्यावरण को प्रदूषित करते है।
बौद्व धर्म के गुरू गौतम बुद्व कहते हैं कि मनुष्य को चाहिए कि प्रकृति में पेड़ पौधे एवं तमाम जीव-जन्तुओं के साथ नदी, तालाब के जल को स्वच्छ रखे जिससे हमारा पर्यावरण सही रहेगा। गौतम बुद्व को ज्ञान की प्राप्ति भी पीपल के पेड़ के नीचे ही हुई थी।
इस्लाम धर्म में भी पर्यावरण को बहुत महत्व दिया है, इसका उदाहरण पवित्र किताब (क़ुरान शरीफ) में 500 से अधिक बार पर्यावरण की बातें की गई हैं। इस्लाम धर्म के पैगम्बर मोहम्मद साहब (स0अ0) द्वारा कहा गया है कि जो कोई पेड़ पौधे लगायेगा और उसमें से कुछ खा लिया जायेगा, और पेड़ से जो कुछ चोरी हो जायेगा, वह उसके लिए क़यामत के दिन तक दान बन जायेगा। 
दूसरे शब्दों में ये कहा जा सकता है कि इस्लाम धर्म में पौधे लगाना न केवल पर्यावरण की दृष्टि से अच्छा है बल्कि सवाब का काम भी है। 
हिन्दू धर्म में पृथ्वी को देवी का रूप माना गया है। हिन्दू धर्म के अनुसार जीवन पाँच तत्वों से मिलकर बना है जैसे पृथ्वी, जल, अग्नि, गगन एवं वायु। पर्यावरण का पूरा आधार ही इन पर निर्भर करता है। भगवान श्री कृष्ण के द्वारा कहा गया कि सर्वे भवन्तु सुखिनः की अभिधारणा लिए प्रकृति और मनुष्य एक दूसरे की सहायता करे। संहारक की स्थिति के बावजूद प्रकृति सदैव मनुष्य को अपने अनुपम उपहारों से नवजाती रही है। प्रकृति और मनुष्य एक दूसरे के पूरक रहे हैं एक के बिना दूसरे की कल्पना करना निराधार है। भगवान श्री कृष्ण प्रकृति के प्रति कितने संवेदनशील और प्रकृति प्रेमी थे, इसका पता उनके द्वारा उपयोग की जाने वाली प्रिय वस्तुओं के अवलोकन से चलता है।
इसी तरहा बहुत से धर्म और भी है जो अपनी पुस्तक एवं ग्रंथों में पर्यावरण को जीवन जीने की शैली पर निर्भर करता है। हमारा देश एक ऐसा देश है जो धर्म की रीति रिवाजो को सबसे ज़्यादा मानता है लेकिन जानता कोई नहीं। सब धर्म हमको प्रकृति से प्यार और सुरक्षा करना सिखाता है लेकिन अफसोस तो इस बात का है कि अपना कर्त्तव्य हम निभाते नहीं। हर मनुष्य स्वंय ज़िम्मेदार हो जाये अथवा अपनी अपनी ग्रंथों की बातो का जिम्मेदारी से 1 प्रतिक्षत भी निभाले तो हमारा पर्यावरण सही हो जायेगा। हमें अपने धर्म, कर्म, देश और पर्यावरण को संजो के रखना है जिससे हम एक बेहतर और स्वास्थ्य समाज बना पायेगें। पर्यावरण दिवस मनाने की खुशी अन्तरात्मा से होगी।

(अना ग़दीर) प्रयागराज 

एक टिप्पणी भेजें

 
Top