कौन कहता है आसमान में छेद नहीं हो सकता, इक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों।
दुष्यंत कुमार की यह दो लाइनें श्रावस्ती के लोगों के लिए मौजू हो गई है। सीताद्वार झील को बचाने के लिए उनका जज्बा देखते बन रहा है। अक्षय तृतीया के रोज तमाम खास-ओ-आम झील की सफाई में अपना योगदान देने को घाट पर पहुंचे। उनमें महिलाएं, बच्चे व बुजर्ग भी शामिल थे। डीएम नेहा प्रकाश की ओर से सीताद्वार झील के कायाकल्प करने के लिए अपील जारी की गई कि इसके लिए लोग आगे आएं। डीएम के साथ पूर्व सांसद व जिला पंचायत अध्यक्ष दद्दन मिश्र, सद्भावना टीम संग इसके अगुवा योगेंद्र मणि त्रिपाठी के अलावा अन्य अधिकारी,   क्षेत्रीय जनमानस व जनप्रतिनिधि ने श्रमदान कर झील को निर्मल बनाने को हाथ बढ़ाए। 
जिला पंचायत अध्यक्ष ने बताया कि मुख्यमंत्री जी की प्रेरणा से  सीताद्वार झील के कायाकल्प कार्यक्रम का शुभारम्भ अक्षय तृतीया के शुभ मुहूर्त में किया गया । श्रावस्ती की पौराणिक धरोहरों में से एक सीताद्वार के विकास का स्वप्न हमने शुरू से देखा है अपने मंत्रित्वकाल में यहां पर एक आयुर्वेदिक अस्पताल सहित कई अन्य सौंदर्यीकरण के कार्य हमने‌ कराए थे । आज मां सीता के आशीर्वाद से जिला पंचायत श्रावस्ती का अध्यक्ष होने के कारण फिर से इस सौंदर्यीकरण योजना में भागीदारी निभाने का अवसर मिलेगा । 
 रंग लाएगी डीएम की मुहिम, बना एक्शन प्लान
 देश , विदेश के पर्यटकों से मंदिर परिसर व झील का तट होगा गुलजार, राजस्व में भी होगा इजाफा
विश्व फलक पर चमकाने को ये है योजना
यहां तालाब की जलकुंभी हटाकर पानी के मध्य एक द्वीप विकसित किया जाएगा। जिस पर पर पर्यटकों के रहने के लिए आवासीय सुविधा संपन्न काटेज का निर्माण होगा ।
बोट क्लब की स्थापना कर पर्यटकों को बोटिंग की सुविधा उपलब्ध करायी जायेगी । 
सीताद्वार‌ परिसर में शापिंग कांप्लेक्स का निर्माण कराया जायेगा । 
पहले से बने पार्क को और सुंदर व सुविधासंपन्न बनाया जायेगा । कुल मिलाकर सीताद्वार की पौराणिक महत्ता से प्रभावित श्रद्वालु धार्मिक कार्यों के अलावा पर्यटन का भी आनंद ले सकेंगे । आस पास के युवाओं को रोजगार भी मिलेगा।
    154. 5 हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैली है सीताद्वार झील 
इकौना से पश्चिम दिशा में लगभग सात
किमी की दूरी पर सीताद्वार मंदिर व झील स्थित है। 
इस झील के बारे में मान्यता है कि सीता जी के वनवास के दौरान जंगल में लक्ष्मण ने यहां भूवेधी बाण चलाकर पानी निकाला था, सीताजी ने इसी पानी को पीकर अपनी प्यास बुझाई थी। 
जनश्रुति के अनुसार प्यास मिटाने के बाद सीताजी ने इसे वरदान दिया था कि तुम रोगनिवारिणी रहो। झील में लोग स्नान करके खुद रोगमुक्ति की कामना करते हैं।
लाखों श्रद्धालु करते हैं स्नान
प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा पर झील तट पर लगने
वाले पांच दिवसीय मेले के अवसर पर लाखों
लोग झील में स्नान करते हैं, लेकिन पानी साफ न होने
 के कारण स्नान करने वालों को चर्मरोग होने
की आशंका बनी रहती है। 
👉झील के तट पर महर्षि बाल्मीकि का आश्रम है।
 👉सीताजी ने यहां अपने  पुत्रों लव-कुश सहित अनेक वर्षों  तक यहां प्रवास किया था।
👉कभी प्रवासी पक्षियों से गुलजार रहने वाली इस रमणीक झील में अब पक्षी तो नहींआते, जलकुंभी व सेवार जरूर दिखता है।
👉अतिक्रमण से  भी सिकुड़ी झील
झील के चारों ओर लोगों ने अतिक्रमण कर
रखा है। कूड़ा कचरा झील में फेंका जा रहा
है। आसपास के लोग झील वाले दायरे में
खेती किसानी कर रहे हैं। नतीजतन धीरे-
धीरे झील पटती जा रही है।
  रिपोर्ट- विजय द्विवेदी, श्रावस्ती

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