सुबह-सुबह जब हम घर से निकलते हैं तो हम आसपास की चीजों से रूबरू होते हैं। इस चकाचोंध भरी जिंदगी में पूरे शहर में भीड़ ही भीड़ दिखाई पड़ती है। नवरात्रि और रमजान के महीनें की शुरूआत हो चुकी है हर तरफ डीजे की धुन पर माता रानी के जयकारे सुनाई पड़ रहा है। हर कोई भक्तिमय में डूबा हुआ है। दूसरी ओर चुनावी महौल खत्मर होने के बाद मंहगाई डायन ने और तेजी से अपने पांव पसार रही है। जिससे जनता त्राहिमाम कर रही। वही दूसरी तरफ रूस-यूक्रेन के युद्ध के अलावा श्रीलंका में आपातकाल और पाकिस्तामन में इमरान की सरकार पर गिरती गाज पर लोगों की निगाहें जमी हुई है,लेकिन इन सबके बीच जगह -जगह  फेके  गए कूड़े-कचरे के ढेर में नंगे पाँव फटेहाल कंधो पर बड़ा सा बोझा टाँगे छोटे-छोटे हाथों में पतली लोहे की छड़ें या किसी डंडी से इन्हीं कूड़ें के ढेरों में अपनी रोटी तलाशते झोपडि़यों में रहने वाले बच्चे और किशोर यह भी एक तस्वीर है शहर की  पहली तस्वीर की चमक के आगे इस तस्वीर का कोई अस्तित्व नहीं है। इन बच्चोंत में कोई डाक्टतर बनना चाहता है तो कोई वकील, कोई देश सेवा करना चाहता है। दिवाली हो या होली या फिर कोई और तीज-त्यौकहार में इनके ही तरह दूसरे बच्चेी अपने मां-बाप या भाई-बहन के साथ उनके हाथों  को पकड़ कर खिलौनों  की कोई  जिद करता है तो कोई झूला झूलने  की, तो  कोई  वनीला आईस्क्री म खाने की। ये इन सबसे चीजों से ये महरूम हैं इनके लिए तो वो  दिन खास होता है जब इनकी कमाई कुछ अच्छी हो जाती है क्योंकि उस दिन उनका पेट आसानी से भर जाता है।

इस कडवे सच का दुखद पहलू ये भी है अब ये जिंदगिया सियासत का मोहरा भी बनती जा रही हैं जिससे इन्हें संदेह भरी नजरों से देखा जाता है कोई इन्हें बांग्लादेशी कहता है, तो कोई गिरह का चोर आदि नामों  से बुलाया जाता है। बहरहाल इन सब के बीच भविष्यल  की अँधेरी  सुरंग में हजारों की संख्या में ऐसे लोग अपना जीवन यापन करते हैं। मुहअँधेरे से लेकर दिन के दो बजे तक शहर के गली कुचो में गंदे नालों से निकाले गए बड़े -बड़े कचरों के ढेर के पास देखे जा सकने वाली इन किशोरों का  अपना अलग वर्ग है। प्लास्टिक, थैला जूता.. चप्पल, डिब्बा,ढक्कन आदि दो रुपये से लेकर पांच रुपये प्रति किलो तक बेचकर अपनी जिंदगी बसर करने वाले इन बच्चों और इनके माँ बाप की बड़ी दर्द भरी कहानी है इन लोगों की समस्या का एक बड़ा कारण परिवार का बड़ा होना भी है । इनका आज भी यही मानना है कि जितना बड़ा परिवार होगा उतनी ज्यानदा कमाई होगी। सरकार द्वारा इनके लिए कई योजनाएं भी शुरू की गई हैं जैसे- लड़कियों के लिए बेटी बचाओं,बेटी पढ़ाओं, सुकन्या  समृद्धि योजना, माध्य मिक शिक्षा के लिए लड़कियों को प्रोत्साहन की राष्ट्रीय योजना, बालिका समृद्धि योजना, स्किल इंडिया, नई शिक्षा नीति योजना, ,स्कूधल चलो अभियान आदि योजनाएं केंद्र सरकार और राज्यो सरकार द्वारा इनके र्स्वां गीण विकास के लिए चलाए जा रहे हैं, लेकिन सरकार की सारी योजनायें यहाँ आकर दम तोड़ जाती हैं, हलांकि सररकार ने सर्वशिक्षा अभियान के तहत बच्चों को स्कूल भेज रही है, लेकिन कचरे ढोने वाले इन बच्चों के नसीब में स्कूल के दर्शन नहीं हैं। शायद इसका एक बड़ा कारण यह है क़ि ये स्कूल जायेंगे तो घर का खर्च कौन चलाएगा। सरकार ने गरीब कल्यायण योजना के तहत लोगों को फ्री राशन भी मुहैया करा रही है लेकिन इस योजना से भी इस तबके को फायदा नहीं मिल पा रहा है। कूड़ा बीनते हुए बब्बभन बताते हैं कि साहब हम भी पढ़ना चाहते हैं, लेकिन अगर स्कू।ल गये दो जून की रोटी कहां नसीब होगी कहते- कहते फफक पड़ते हैं।
 
      स्वस्थ और सभ्य समाज में अलग थलग इस तबके की ओर कोई देखना पसंद नहीं करता अलबत्ता गलिओ  के कुत्ते जरूर इनका ख्याल रखते हैं सरकार द्वारा चलाये जा रहे किसी भी योजना का लाभ इन्हें नहीं मिलता है ऊपर से इनके आशियाने को तोड़ने को सरकार जरूर प्रयत्नशील रहती है ऐसे  में इनकी व्यथा और दयनीय  हो जाती है और सरकार द्वारा चलायी जा रही सारी योजनाये यहाँ आकर बौनी साबित हो  जाती है।
 अंबरीश दिवेदी

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