मैं जब पढ़ता था तो वे कहते थे कि पढ़ोगे लिखोगे होगे नवाब, तुमको नवाब बना देंगे, तुमको तहसीलदार बनाएंगे। तुम राष्ट्रपति हो जाओगे। ये प्रलोभन हैं और ये प्रलोभन हम छोटे-छोटे बच्चों के मन में जगाते हैं। हमने कभी उनको सिखाया क्या कि तुम ऐसा जीवन बसर करना कि तुम शांत रहो, आनंदित रहो! नहीं। हमने सिखाया, तुम ऐसा जीवन बसर करना कि तुम ऊंची से ऊंची कुर्सी पर पहुंच जाओ। तुम्हारी तनख्वाह बड़ी से बड़ी हो जाए, तुम्हारे कपड़े अच्छे से अच्छे हो जाएं, तुम्हारा मकान ऊंचे से ऊंचा हो जाए, हमने यह सिखाया है। हमने हमेशा यह सिखाया है कि तुम लोभ को आगे से आगे खींचना, क्योंकि लोभ ही सफलता है। और जो असफल है उसके लिए कोई स्थान है?

इस पूरी शिक्षा में असफल के लिए जब कोई स्थान नहीं है, असफल के प्रति कोई जगह नहीं है और केवल सफलता की धुन और ज्वर हम पैदा करते हैं तो फिर स्वाभाविक है कि सारी दुनिया में जो सफल होना चाहता है वह जो बन सकता है, करता है। क्योंकि सफलता आखिर में सब छिपा देती है। एक आदमी किस भांति चपरासी से राष्ट्रपति बनता है! एक दफा राष्ट्रपति बन जाए तो फिर कुछ पता नहीं चलता कि वह कैसे राष्ट्रपति बना, कौन सी तिकड़म से, कौन सी शरारत से, कौन सी बेईमानी से, कौन से झूठ से? किस भांति से राष्ट्रपति बना, कोई जरूरत अब पूछने की नहीं है! न दुनिया में कभी कोई पूछेगा, न पूछने का कोई सवाल उठेगा। एक दफा सफलता आ जाए तो सब पाप छिप जाते हैं और समाप्त हो जाते हैं। सफलता एकमात्र सूत्र है। तो जब सफलता एकमात्र सूत्र है तो मैं झूठ बोल कर क्यों न सफल हो जाऊं, बेईमानी करके क्यों न सफल हो जाऊं! अगर सत्य बोलता हूं, असफल होता हूं, तो क्या करूं?

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