भारतीय दर्शन के अनुसार ज्ञानेंद्रियाँ वे माध्यम हैं जिनसे हम बाहरी संसार से ज्ञान प्राप्त करते हैं, इन्हें ज्ञान के उपकरण भी कहा गया है। ‘ज्ञान’ का अर्थ है जानना और ‘इंद्रिय’ का अर्थ है अनुभव करने की शक्ति। इस प्रकार ज्ञानेंद्रियाँ वे साधन हैं जो हमें “जानने और समझने” में मदद करती हैं। हम जो देखते हैं, सुनते हैं, सूंघते हैं, स्वाद लेते हैं या स्पर्श करते हैं — वो सब ज्ञानेंद्रियों की क्रिया है। इनके माध्यम से ही हमारे भीतर विचार बनते हैं, भावनाएँ जन्म लेती हैं और निर्णय निर्मित होते हैं। यही कारण है कि यदि हमारी इंद्रियाँ असंतुलित हों तो विचार भी असंतुलित हो जाते हैं। क्रमानुसार ----
आँखें
दृष्टि केवल देखने का माध्यम नहीं, बल्कि समझने का साधन भी है अगर आँखें सजग हैं तो व्यक्ति केवल रूप नहीं भाव भी देखता है। सकारात्मक दृष्टि जीवन में संतुलन लाती है जबकि नकारात्मक दृष्टि भ्रम और असंतोष।
कान
सुनना एक कला है। जब हम सचमुच “सुनते” हैं, तो समझ पैदा होती है। रिश्तों की सबसे बड़ी समस्या यही है लोग जवाब देने के लिए सुनते हैं, समझने के लिए नहीं। सजग श्रवण से संवाद में स्पष्टता और संबंधों में मधुरता आती है।
नाक
यह केवल सुगंध या दुर्गंध पहचानने की शक्ति नहीं है, बल्कि वातावरण और ऊर्जा को महसूस करने की क्षमता भी देती है। अगर व्यक्ति की नासिका सजग है तो वह वातावरण की “सकारात्मकता” या “भारीपन” को भी भाँप सकता है।
जीभ
जीभ केवल स्वाद लेने का माध्यम नहीं, बल्कि बोलने का भी अंग है। जब रसना पर संयम होता है, तो मनुष्य के शब्दों में भी मिठास आती है। अति-भोजन या तीखे शब्द दोनों ही जीवन में असंतुलन लाते हैं।
त्वचा
स्पर्श केवल शारीरिक नहीं, भावनात्मक अनुभव भी देता है। किसी बच्चे को प्यार से छूना, किसी का हाथ थाम लेना यह संवेदनशीलता का प्रतीक है। त्वचा हमें यह सिखाती है कि जीवन केवल देखने या सुनने का नहीं महसूस करने का भी नाम है।
इंद्रियाँ स्वयं में स्वतंत्र नहीं हैं वे मन की आज्ञा पर कार्य करती हैं। मन ही यह तय करता है कि क्या देखना है, क्या सुनना है, और किस पर ध्यान देना है। इसलिए योगशास्त्र में कहा गया है — मन ही बंधन और मुक्ति का कारण है। जब मन अस्थिर होता है, तो इंद्रियाँ बिखर जाती हैं और जब मन शांत और सजग होता है तो इंद्रियाँ नियंत्रित रहती हैं। इस नियंत्रण को ही इंद्रिय संयम कहा गया है। जो व्यक्ति इंद्रियों का स्वामी बनता है, वही अपने जीवन का मालिक बनता है और व्यक्ति स्वामी तभी बन पाएगा जब आप देखने में सजग होते हैं किसी की बात को बीच में काटे बिना सुनना, स्वाद में संयम रखना, हर स्पर्श में संवेदना और मर्यादा दोनों का झलक हो, सकारात्मक ऊर्जा का अपनापन और नकारात्मकता से दूरी हो। प्रत्येक संबंध केवल शब्दों से नहीं, बल्कि संवेदनाओं से चलता है। सुनने की संवेदना, देखने की समझ और बोलने की कोमलता रिश्तों को टिकाऊ बनाती है।
परिवार में अगर हम सुनने, देखने और बोलने की तीन इंद्रियों को संतुलित रखें तो घर में अनावश्यक वाद-विवाद नहीं होंगे। माता-पिता यदि बच्चों को समझने के लिए सुनें और बच्चे माता-पिता को आदरपूर्वक देखें तो पीढ़ियों के बीच पुल बनता है, दीवार नहीं। यदि हर व्यक्ति सुनने, समझने और देखने में सजग हो जाए तो समाज में गलतफहमियाँ और कटुता कम हो जाएँ। इंद्रिय-जागृति समाज में सह-अस्तित्व की भावना जगाती है। आज का युग सूचना, मोबाइल और शोर से भरा हुआ है। मनुष्य की इंद्रियाँ निरंतर थक रही हैं, कान लगातार आवाजें सुन रहे हैं, आँखें स्क्रीन की रोशनी से थक चुकी हैं, जीभ कृत्रिम स्वादों में उलझ गई है, और मन भावनाओं के बोझ से झुक गया है इसलिए आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है इंद्रियों की विश्रांति और पुनर्जीवन। प्रकृति के संपर्क में रहना, ध्यान करना, संगीत सुनना, मौन का अभ्यास करना ये सभी इंद्रियों को पुनः ऊर्जा देते हैं।
भारतीय दर्शन कहता है — इंद्रियाँ बाह्य जगत का अनुभव कराती हैं, परंतु मन उनसे भी उच्च है। जब मनुष्य अपनी इंद्रियों का सही उपयोग करता है, तो वह केवल “देखने” वाला नहीं रहता, बल्कि “समझने” वाला बन जाता है। वह केवल “सुनने” वाला नहीं, बल्कि “अनुभव करने” वाला हो जाता है। यही अवस्था आध्यात्मिक जागृति की शुरुआत है तो भीतर के प्रकाश को जलाइए और वातावरण को रोशन करने में अपना सहयोग दीजिए, इंद्रियाँ ही हमारे जीवन के द्वार हैं। इन द्वारों पर जब सजगता का दीप जलता है, तो भीतर का अंधकार मिटता है। मनुष्य के विचारों में स्पष्टता, व्यवहार में संतुलन और संबंधों में मिठास स्वतः आ जाती है। इस दीपावली, केवल घर में नहीं — अपने मन, विचार और इंद्रियों में भी प्रकाश जलाइए। क्योंकि जिस मनुष्य की इंद्रियाँ जागृत होती हैं, वह न केवल स्वयं रोशन होता है, बल्कि अपने आसपास के हर जीवन को प्रकाशित कर देता है।
"जब भीतर का दीप जले, तभी जीवन में सच्चा प्रकाश फैलता है - शुभ दीपावली"
लेखक धीरज मिश्रा
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