आज़मगढ़ से एक चौंकाने वाली तस्वीर सामने आई है...
जहां निर्जीव नहीं, बल्कि जीवंत हरियाली की हत्या हो रही है!
सवाल उठता है — क्या अब पेड़ काटना भी वैध धंधा बन चुका है?
किसने तय किया कि एक पेड़ की कीमत सिर्फ ₹1000 होगी?

क्या ये कोई सरकारी रेट है...
या फिर फॉरेस्ट ऑफिसर की जेब में बना हुआ “पेड़ प्राइस लिस्ट”? 

सिंहीपुर और दौलतपुर में चल रही तेज़ कटान —
क्या ये “विकास” है या “विनाश”?
कहीं ऐसा तो नहीं कि वन विभाग खुद इस कटान का मौन साझेदार बन गया है?

लोगों का आरोप है —
“फॉरेस्ट ऑफिसर 1000 रुपए लेकर पेड़ काटने की अनुमति दे रहे हैं।”
अगर ये सच है, तो सवाल बड़ा है —
क्या आजमगढ़ में जंगल बिक चुके हैं?
क्या हवा का सौदा हो चुका है?

हर पेड़ के साथ मर रही है ऑक्सीजन,
हर कटे तने के साथ गिर रही है इंसानियत की जड़ें।
तो क्या अब सरकार भी इन आवाज़ों को सुनने से इनकार कर चुकी है?
क्या वन विभाग के दफ्तरों में अब “हरा रंग” सिर्फ नोटों में बचा है?
सिंहीपुर-दौलतपुर में कटान रुकवाने की जिम्मेदारी आखिर कौन लेगा?
कानून कहां है? कार्रवाई कब होगी? या फिर सब कुछ “मैनेज” हो चुका है?

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