आजादी के बाद से ही बेरोजगारी की समस्या विमर्श का केन्द्र रही है। बीते कुछ सालो से खासकर नोटबंदी और कोरोना महामारी के दौरान देश में रोजगार के अवसर सीमित हुए है। जिस वजह से बेरोजगारी बढ़ी है। एनएस एस ओ के सर्वेक्षण में 2017-18 में भारत मे बेरोजगारी दर 6.1 फीसदी रही, जो पिछले 45 साल में सबसे अधिक रही। कोरोना महामारी के दौरान तो स्थिति और भी खराब हो गई।
रोजगार व्यक्ति के गारिमामय और गुणवत्ता परक जीवन का आधार 'है। काम करने वाले हर व्यक्ति को रोजगार मिलना समावेशी और समृद्ध अर्थव्यवस्था की निशानी है। चूंकि देश में संसाधनों की अपेक्षा जनसंख्या का भार बहुत अधिक है। इसलिये प्रत्येक व्यक्ति को गुणवत्तापरक रोजगार मिलना मुश्किल है। फिर भी इस विशाल जनसंख्या को वरदान में बदला जा सकता है। अन्य देशों के मुकाबले सस्ते काम करवाकर हम वैश्विक बाजार में भारत को बढ़त दिलवा सकते हैं। भारत की 45% जनसंख्या कृषि कायो से जुड़ी हुई है जबकि जीडीपी में कृषि का योगदान सिर्फ 15% ही है। वहीं सेवा क्षेत्र का जीडीपी में योगदान 60% है; जबकि इस क्षेत्र मे बमुश्किल 30% लोग हो जुड़े हुए हैं।
हमे जरूरत के मुताबिक मानव संसाधन का विकास करना होगा। शिक्षा व्यवस्था को बाजार व्यवस्था के अनुरूप ढालना होगा। पाठ्यक्रमो को रोजगार परक बनाना होगा। कौशल विकास के तहत युवाओ को तैयार करना होगा, विनिर्माण क्षेत्र मे ध्यान देना होगा, ताकि रोजगार के अवसरो का निर्माण हो सके। समावेशी और सतत विकास हेतु आर्थिक नीतियां देश की विशाल जनसंख्या को ध्यान में रखकर बनाना होगा जिससे सभी को रोजगार हासिल हो सके।
डाक्टर अव्दुल कलाम के मॉडल के तहत गाँवो को आर्थिक गतिविधियो का केन्द्र बनाकर गाँव व कृषि क्षेत्र से जुड़ी परेशानियों को दूर करके तथा उन्हें आर्थिक गतिविधियो का भागीदार बना कर रोजगार के नये अवसर पैदा किये जा सकते है। महत्वपूर्ण यह कि लीक से हट कर उत्पन्न हो रही डिजिटल क्रांति की संभावनो को अपने पक्ष में करके रोजगार के अवसर बढ़ाये जा सकते हैं। रोजगार के संकट के सच को जितनी जल्दी स्वीकार करके समस्या का समाधान किया जायेगा उतनी जल्दी ही इस समस्या पर काफी हद तक विजय पाई जा सकेगी।
रोहित मिश्रा, प्रयागराज
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