मैं जब शुरू–शुरू में यहां फ्लैट लेकर रहने लिए आया था तब यहां कई सारे हरे–भरे पेड़ थे लेकिन रफ्ता –रफ्ता बिल्डरो ने नई–नई बिल्डिंग बनाने के लिए उन सारे पेड़ों को एक–एक करके कटवा दिया. हर पेड़ कटते समय उस पेड़ पर बैठने वाली चिड़ियों का एक शोर सा उठता जो शायद उनके रोने और उनके उस पेड़ के आशियाने से हमेशा के लिए अलग हो जानें का होता. जब इस तरह मैं चिड़ियों के रोने और तड़पने की आवाज मैं सुनता तब यह समझ जाता कि,–“फिर एक नई बिल्डिंग के लिए कुछ हरे पेड़ काटे जा रहे है और एक वह भी समय आया जब सारे बड़े बिल्डिंगो के बीच चिड़ियों के बोलने का संगीत मौन हो गया.” बस! ले देकर एक आखिरी पेड़ ही बचा रह गया था जहा से हफ्ते में एकाध बार गुजरता तो कुछ एक चिड़ियों की आवाज़ आ जाती थी लेकिन उन चिड़ियों के बोलने में एक भय और डर का एहसास होता था. दरअसल चिड़ियों का यह सहमापन हम मनुष्यो के बर्बर कातिल होने की तरफ साफ इशारा था.

उस दिन संडे की छुट्टी थी और मैं तमाम दिचचर्या से खाली होकर ज्योंहि पत्नी की बनाई चाय और अखबार खोलकर पढ़ने के लिए बैठा वैसे ही चिड़ियों के जोर–जोर से तड़पने और उनके चीखने की आवाज़ मेरी कानों तक आई मैं समझ गया कि आज यहां का आखिरी बचा हुआ पेड़ भी कट रहा है. मुझे इतनी पीड़ा हुई की मैं अखबार और गर्म चाय को यूं ही मेज पर छोड़कर बिना पत्नी को बताए उस आखिरी पेड़ की तरफ चल पड़ा यह देखने कि, मैं इस कालोनी का अंतिम कटता हुआ पेड़ और आखिरी बार चिड़ियों की तड़पती हुई आवाज़ सुन सकू. जब मैं उस पेड़ के करीब पहुंचा तो वह पेड़ सत्तर प्रतिशत कट चुका था,तभी पेड़ काटने वाले मजदूरों ने मुझे जोर से आवाज दी की,–“ हट जाईए साहब! वरना पेड़ आपके ऊपर गिर जाएगा और आपको चोट लग जाएगी.” चोट ! सच ही तो कहा था उसने की मुझे चोट लग जाएगी. एक चोट तो कभी ना खत्म होने वाली मुझे बहुत पहले ही लग चुकी थी.

फिर इसके कुछ ही देर बाद एक जोर की आवाज के साथ वह आखिरी पेड़ भी कटकर जमीन पर गिर पड़ा तो मुझे ऐसा लगा कि , जैसे वह पेड़ अपने मरने से पहले अपने हाथ पैर जमीन पर पटक रहा हो फिर इसके कुछ देर बाद ही जैसे उस पेड़ के प्राण पखेरू उड़ गए. हां! लेकिन उस पेड़ को काटने वाले मजदूर एक–एक बीड़ी सुलगाकर अपनी होठों से लगाकर इस तरह हंस–हंस के पीने लगे जैसे किसी लाश को जलाने के लिए साथ गए हुए कुछ लोग लाश जलाने के बाद पूड़ी सब्जी और मिठाई छकते हुए खुश होते है.

मैं तुरंत ही उसके बाद उल्टे पैर अपनी फ्लैट पर लौट आया तभी पत्नी ने पुछा कि,– अरे ! अभी तलक आपने चाय नही पी. देखिए तो कितनी ठंडी हो गई है. उसके इतना कहने के बाद भी जब मैंने कोई उत्तर नही दिया तो उसने मेरी तरफ देखा तो अवाक रहे गई .अरे आपको क्या हुआ ? कोई बात हो गई क्या ? दरअसल उसका इतना चौकना लाज़मी था, मैं फिर भी उससे कुछ नही बोला तो वे मेरे पास आई और बोली कुछ बोलिए तो ? उसके इतना कहते ही मैं खुद को रोक नही पाया और अपनी पत्नी के कंधे पर सर रखकर रोने लगा. कुछ देर तक मुझे रो लेने के बाद वे फिर बोली,– प्लीज! कुछ तो बताइए कि आखिर बात क्या है? उर्मी जानती हो आज फिर एक नई बिल्डिंग के लिए यहां का बचा हुआ आखिरी पेड़ भी कट गया.


लेखक--रंगनाथ द्विवेदी
जज कॉलोनी, मियापुर
जिला--जौनपुर 

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