लगभग तीन वर्षों से कोरोनाकाल कि मार झेल रहे भारत वर्ष और हर आम नागरिक पहले से ही  बड़ी विकट स्थिति से गुज़र रहा है। एक आम आदमी जो कि इस देश की नींव है उस के लिए जीवन के संघर्ष ही इतने होते हैं कि वो अपनी नौकरी, अपना व्यापार, अपना परिवार, अपना और अपने बच्चों के भविष्य के सपनों से आगे कुछ सोच ही नहीं पा रहा है। इसी बीच कई वैश्विक घटनाएं जैसे रूस और यूक्रेन का युद्ध भी एक अलग चिंता का विषय बना हुआ था।  यूक्रेन और रूस के बीच चल रहे युद्ध ने वैश्विक जिंस बाजारों को अस्त-व्यस्त कर दिया है। हर व्यक्ति रोज सुबह उम्मीदों  की नाव पर सवार अपने काम पर जाता है और शाम को इस दौड़ती भागती जिंदगी में थोड़े सुकून की तलाश में घर वापस आता है।
तीज त्यौहार उसके इस नीरस जीवन में कुछ रंग भर देते हैं। एक आम आदमी का परिवार साल भर इन तीज त्योहारों का इंतजार करता हैं। घर के बड़े बुजुर्गों की अपनी पीढ़ियों पुरानी परंपराओं के प्रति आस्था तो बच्चों के मन की उमंग इन त्योहारों के जरिये उसके जीवन में कुछ रस और रंग भर देते हैं। लेकिन जब यही त्योहार जिंदगी को मौत में बदलने का कारण बन जाएं, जब इन त्यौहारों पर जीवन रंगहीन हो जाए, उनका घर ,उनकी दुकानें, उनका कारोबार ,उनकी जीवन भर की कमाई हिंसा की भेंट चढ़ जाए तो फिर क्या बीतेगी उन परिवारों पर।
  पहले करौली में नवसंवत्सर के जुलूस पर हमला, फिर रामनवमी पर मप्र, बंगाल, गुजरात, झारखंड,जेएनयू और उसके बाद हनुमान प्रकटोत्सव पर दिल्ली, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, उत्तराखंड और महाराष्ट्र के कुछ स्थानों पर शोभायात्रा निकालने के दौरान जो हिंसा भड़की थी वो अनेकों पर सवाल खड़े करती है।
वैसे तो हिंसक घटनाएं इस देश के लिए नई नहीं हैं। कुछ समय पहले तक आतंकवादी घटनाएं जैसे सार्वजनिक स्थानों पर बम धमाकों से लेकर आत्मघाती हमले अक्सर होते थे। आज उस प्रकार की आतंकवादी घटनाओं पर तो विराम लग गया है, परन्तु आज जिस प्रकार की हिंसक घटनाएं देश के विभिन्न जगहों पर हो रही हैं वो बेहद चिंताजनक हैं क्योंकि ये घटनाएं उन आतंकवादी घटनाओं से अलग हैं।
उन घटनाओं में आतंवादी संगठनों का या अलगाववादी नेताओं का हाथ होता था जिन्हें बकायदा प्रशिक्षण प्राप्त आतंकवादी अंजाम देते थे। लेकिन आज इन शोभायात्राओं में होने वाले उपद्रव स्थानीय हिंसा है। जिस प्रकार के खुलासे हो रहे हैं उनके अनुसार इन सभी जगह हिंसा की शुरुआत एक ही तरीके से हुई। क्षेत्र के आदतन अपराधी इन जोलूसों के निकलने के दौरान जुलूस में शामिल लोगों से रास्ता बदलने के लिए या फिर भजनों और नारों को बंद करने को लेकर वाद विवाद करते हैं जो हिंसा में तब्दील हो जाता है।
मस्जिदों और आसपास के घरों की छतों से पथराव शुरू हो जाता है। देखते ही देखते दुकानों और गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया जाता है। दंगाइयों के बुलन्द हौसलों का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे पुलिसकर्मियों पर भी हमला करने में नहीं हिचकते। ऐसी ही वारदात 2 मई को रात 11 बजे जोधपुर के सबसे व्यस्ततम इलाके जालोरी गेट पर हुई। जोधपुर में न तो रामनवमी का जुलूस था, न महावीर जयंती का, न ही DJ बजाया गया, फिर क्यों मजहबी नारे लगाकर पथराव हुआ ? जिस तरह से भगवा ध्वज को उतारकर एक इस्लामिक झण्डा लगाया गया था ये घटनाएं कोई संयोग नहीं बल्कि एक सोची समझी साजिश कि तरफ इशारा करती है।
ये संयोग है या प्रयोग ये तो निष्पक्ष जांच के बाद ही पता चलेगा। देश ने उपद्रवियों द्वारा पुलिस प्रशासन पर हमला, पत्रकारों पर पथराव, घरो पर पथराव,घर के बाहर खड़ी गाड़ियों कि तोड़ फोड़, के विडियो और तस्वीरें बता रही है कि उपद्रवियों के हौसले कितने बुलंद हैं। ना प्रशासन का डर है ना ही शांति भंग होने कि कोई चिंता। आप इसे क्या कहेंगे ? जिस पुलिस के सामने एक आम आदमी के पसीने छूट जाते हैं उसी पुलिस को इन अपराधियों को कोर्ट से सज़ा दिलवाना तो दूर की बात है उनकी बेल रुकवाने में पसीने छूट जाते हैं!
स्थिति का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि दिल्ली दंगों के आरोपियों को चिन्हित करने के बाद उनके अवैध कब्जों को गिराने के लिए जब सरकार की ओर से कार्यवाही की गई तो इस कार्यवाही के खिलाफ कोर्ट से स्टे आर्डर आ जाता है। विडम्बना की पराकाष्ठा देखिए कि संविधान की दुहाई देने वाले संविधानिक को ताक पर रखकर किए गए अतिक्रमण को बचाने के लिए संविधान का सहारा लेकर कोर्ट जाते हैं और असंवैधानिक तरीके से किए गए निर्माण को गिराने से रोकने के लिए स्टे आर्डर  भी  मिल जाता है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कि आड़ में ये लोग उन लोगों को बचाने के लिए आगे आए हैं जिन्हें रामनवमी और हनुमान प्रकटोत्सव के जुलूसों में लोगों द्वारा अपनी आस्था की अभिव्यक्ति रास नहीं आई। इन परिस्थितियों में ये सवाल तो  होंगे कि देश के विभिन्न स्थानों पर निकलने वाली शोभायात्राओं पर एकसाथ हमले क्या संयोग हैं? हमलावरों की इतनी भीड़ क्या अचानक इकट्ठा हो जाती है? 
क्या स्थानीय स्तर पर होने वाली इस प्रकार की घटनाएं देश भर में सामाजिक समरसता को चुनौती नहीं दे रही है? 
वर्तमान परिस्थितियों को अगर सुधारना है तो ऐसे सवालों के जवाब तो देश के सामने रखने ही होंगें। क्योंकि जिस प्रकार के खुलासे इन घटनाओं की जांचों में हो रहे हैं वो स्थिति की गंभीरता की ओर इशारा कर रहे हैं।
इस तरह कि वारदातों पर समय रहते उचित कार्रवाई नहीं कि गई तो इन उपद्रवियों के हौसले और ज्यादा बढ़ जाएंगे और इनका अंजाम क्या होगा ये सभी जानते ही हैं।

 सुधा प्रजापति,
     जोधपुर

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