गहमर रेल आन्दोलन , यदि दूसरे भाषा में कहें तो बहुरहवा की मेहरारू सोमिनिया। जिसको आज पैदा हुए और कब्र में पैर लटकाये दादा जी दोनो भौजाई से ही संबोधित करते हैं। घुरहूँ से लेकर एतवारू तक, पतवारू से लेकर खतवारू तक सभी एक ऑंख दबा कर *का हो भउजी का हाल बा?* कह कर निकल लेते हैं, और सोमिनिया बेचारी घूँघट की ओट से उनकी दशा और अपने आप पर मंथन करती रह जाती है।
ठीक वही हाल गहमर रेल आन्दोलन का है। जिसको देखों फेशबुक पर एक पोस्ट डाल कर अंगुली करता ही नज़र आता है। हकीकत के धरातल पर उतर कर तो विरले ही आते हैं। अब जैसे बहुरहवा की मेहरारू सोमिनिया से छोट-बूढ़े ऑंख दबाने और मज़ाक करने के अपने अपने तर्क पूर्ण रिश्ते हैं, उसी तरह रेल आन्दोलन में हकीकत की जमीन पर न उतरने के भी अपने-अपने भीम की गदा से वजनी तर्क हैं, जो अर्जुन के बाणों की तरह नुकीले और लक्ष्य भेदन में महारथ हासिल किये हैं।
किसी को वह राजनीत लगती है इस लिए वह नहीं जाता, किसी को वह भाजपा के विरोध में लगती है इस लिए वह हकीकत की धरातल पर नहीं उतरता तो किसी को वह कुछ लोगो का स्वार्थ लगती है इस लिए वह उनसे मतलब नहीं रखता, तो किसी को खाने पीने का जुगाड़ लगती है तो वह अपना हज़मा खराब के डर से नहीं पहुँचता, तो किसी को उसमें जुड़े लोगो का स्वार्थ नज़र आता है तो अब बताईये कोई कैसे किसी का स्वार्थ देखे? तो वह न जायेगें न देखेगें को आधार बना कर नहीं जाता।
तो कुछ लोग अखंड गहमरी मौजूदगी के कारण उसे अपनी सनुने वाला बता कर नहीं जाते। अब यह कहना गलत नहीं होगा कि कनकटिया मैम के सिर में काली घनी जुल्फ़ो के बीच जितने सफेदपोश बाल हैं उतने कारण इस रेल आंन्दोलन में न जाने के हैं। मगर। ओह! -ओह!, गहमरी तुम्हारी ये अगर-मगर लिखने की आदत बड़ी खराब है। लैला-मजनू के एकान्तवाश में दादी की जोरदार खासी की आवाज की तरह तुम्हारा यह अगर मगर आकर सारे ईश्क का मजा ही चौपट कर देता है।
मगर, इस ठहराव न होनें से परेशानीयों के तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता। हॉं ये बात अलग है कुछ रुक रही हैं न, कुछ ना रूके तो ना सही, कौन सा मेरे अब्बाजान ने निकाह छोड़ कर उसे रूकवाने के लिए भारत से अरब की दौड़ लगाई थी। वो तो रेल का एहसान था, कुछ पागलों की सनक थी जो रूक गई। अपन के अब्बा का क्या जाता है।
विधायक जी के चुनाव में 10 मार्च के बाद 10 मार्च के बाद खूब हल्ला मचाये विधायक भक्त, विधायक प्रेम दर्शाये। अब तो 10 मार्च आ गया, भाग लें लंक लगा के, नहीं तो वह अखंडवा फिर कहीं शुरू कर दिया इस हंगामें को तो अब क्या जबाब रहेगा?
वैसे परेशान होने की जरूरत नहीं जब हमारी पूर्व विधायक 10 अप्रैल 2021 के बाद खुद घरने पर बैठने की बात कह कर मुकर गई तो हम तो उनके खादिम ही हैं 10 जनवरी 2022 को 10 मार्च 2022 को बैठने के बाद यदि भाग लेगें तो नया इतिहास थोड़े लिख जायेगा? कह देगें नो विधायक नो आन्दोलन। सपा को बुलाओ-सपा को बुलाओ, विकास के दुश्मनों सपा को बुलाओ। लेकिन जब तक वह नहीं लिख रहा है तब तक फेशबुक पर खूब *रेल आन्दोलन* पर दहाड़ लो। सबको कटघरे में खड़ा कर लो। ये कर लो, वो कर लो, और जब शुरू होगा तो कहने के लिए एक नया बहाना तैयार कर लो, क्योंकि यह तो गहमर का मान-सम्मान तो है नहीं।
बक्सर रेलवे स्टेशन पर मगध पकड़ने के लिए बैठी अपने बच्चों की मम्मी को आइसक्रीम खिलाते हुए बड़े शान से बच्चों को बतायेगें कि यह ट्रेन कभी गहमर भी रूकती थी, और हम इतने महान थे कि हम पापिंग-पापिंग डान्स करते रहे जब इसका ठहराव खत्म हुुआ। अच्छा ठहराव खत्म तो अब भैया हमारा लेखन भी खत्म। चलता हूँ राम राम, गाली-शाली देना, रात अंधेरे में मिलूँ तो मुहॅं तोड़ देना, मगर दुआओं में याद रखना ।
*अखंड गहमरी
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