निरंतर जटिल होती भरष्टाचार की समस्या का उन्मूलन कैसे हो? इस सब्जेक्ट पर एक सामाजिक चिंतन की आवश्यकता है राष्टीय स्तर पर व्यापत इस समस्या के लिए समान रूप से विधयिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका जिम्मेदार हैं। विधायिका और कार्यपालिका में करप्शन तो जगज़ाहिर है। लेकिन जब ज्यूडिशियरी जैसी संस्था में करप्शन अपने चरम पर पहुँचकर सारे रिकॉर्ड तोड़ दे तो यह आमतौर लोगो को हज़म नही होती है। जी हां हम बात कर रहे हैं इलाहाबाद हाइकोर्ट की।  शनिवार को न्यामूर्ति कृष्ण पटेल ने डॉक्टर राजीव गुप्ता के मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि करप्शन हर प्रणाली में दीमक की तरह है। लेकिन बता दें कि अभी दो दिन पहले ही NTA ने अलाहाबाद हाइकोर्ट के समीक्षा अधिकारी, सहायक समीक्षा अधिकारी और कंप्यूटर अस्सिस्टेंट का परिणाम जारी किया जिसमें घोर धांधली होने का आरोप लगाया जा रहा है। दिन रात मेहनत करने वाला  student ज्यादा मार्क्स लेकर असफल हो जाता है और कम मार्क्स पाने वाला सफल हो जाता है। ऐसे में सवाल उठता है कि न्याय के मंदिर में ही जब इस प्रकार का खेल का खेला जाएगा तो students के साथ ही साथ आमजन का भी विश्ववास डगमगा जाएगा। फ़्लैश बैक में जाकर देखे तो 2014, 2017 में भी घोर करप्शन हुआ लेकिन कोर्ट ने एक सिरे से खारिज कर दिया था। आज के दौर में करप्शन का खेला राष्ट्र की मुख्यधारा के अभिन्न अंग बन चुका है। तथा लोकतंत्र की संस्कृति बन चुका है। आये दिन comparisons exam में करप्शन का बोलबाला है। चाहे  वो लोकसेवा आयोग हो, अधीनस्थ सेवा आयोग हो, या फिर ज्यूडिशियरी या रेलवे। सालों मेहनत करने वाला असफल हो जा रहा है। ये कैसी विसंगति है इस पर आज के दौर में चिंतन जरूरी है। बड़े दुःख के साथ कहना पड़ रहा है न्यायालय में इस तरह प्रतियोगी एग्जाम में धांधली होना कई सारे सवाल खड़े करते हैं। सरकार के करप्शन को लेकर सारे दावे फेल हैं।  यदि इसी तरह students के चरित्र हनन होता रहा तो निश्चित रूप से इस देश को पुनः एक बार अपमानजनक सिचुएशन में धकेल दिया जाएगा। इस और न तो इण्डियन मीडिया ध्यान देती है न सरकार।
अम्बरीश द्विवेदी

एक टिप्पणी भेजें

 
Top