मदद तब तब अच्‍छा लगता है जब तक अपने पास दूूसरों की मदत करने की फुरसत हो या उसकी आवश्‍यक्‍त वास्‍तव में मदद के लायक हो तो अच्‍छा भी लगता है पर इस लोभी संसार मे कुछ ऐसे भी लोग है जो एक दम दूसरे के आसरे टिक जाते है तब वो मदद करने वाला व्‍यक्ति सहायक व्‍यक्ति न रह कर अपने आप को एक बंधन में बधा हुआ महशूस करता है, और ना ही किसी काम को टाल सकता है, और ना ही मना कर सकता है। तब उसके पास बहाने बनाने के अलावा और कुछ नही सुझता, हम ही कुछ ऐसी बहाने बनाते बनाते एक काम को टाल रहे थे, लेकिन उस वक्‍त हमको बहाना बनाते वस्‍तव मेें अच्‍छा नही लग रहा था, उनका काम भी कुछ खास नही था। एक और बात वो जब भी हमसे किसी काम के लिए मदद मांगे है  तो लगभग दस में से दो ही काम वास्‍तव में मदद मांगने के काबिल होता है। मदद किसी और काम के लिए मागते है और करने लगते है कोई और काम फिर भी हम बुरा नही मानते क्‍योंकि कुछ लोगों की आदत होती है कि जब तक जो किसी का साथ न पाए तब तक वो कोई काम नही कर सकते यही सोचकर उनका हम हर काम में साथ देते चले आ रहे है पर आज तो हद हो गई मेरे पास खुद के कार्यो की लाइन लगी थी। अौर आ बैठे मेरे पास और कहने लगे की चलो मेला देखने चलते है, मैने कहा कि मेरे पास टाइम नही है मै नही जा सकता आप चले जाए, कहने लगे की अपनी बाइक दे दो, अगर मेरे पास उसकी उस वक्‍त जरूरत न होती तो मै दे देता। थोडे ही देर पहले एक फोन आया था और कमरे के बाहर नुक्‍कड तक वो बुलाएं थे, उनसे कुछ समान लेना था। मैने सोचा कि चलो सामान भी ले लेगे और इनके साथ मेला भी देख लेगे क्‍योंकि उन्‍हो ने कहा कि आधा एक घंटा मे चले आयेगे। मै निकल गया। मै अपना समान लेते हुए मेला देखने के लिए चला तो वो भाई साहब एक चौराहे की तरफ इशारा करते हुए बोले कि एक मिनट रूकना। वो एक मिनट एक घंटा हो गया वो किसी सज्‍जन से बात कर रहे थे अौर मै अपनी बाइक पर बैठ कर झक्‍क मार रहा था। रात के नौ बज गये, चूहे पेट मे खलबली मचा रहे थे, क्‍योंकि दिन में खाना खाया नही था और कमरे पर जा कर खाना भी बनाना था। किसी तरह वहां से निकले रास्‍ते में फिर एक दुकन पर रूक गये मैने कहा, यहां क्‍या काम है ?  कहे एक क्‍वाटर मार लू तो मेले का आनन्‍द आ जाएगा मैने कहा जल्‍दी निपटिये अभी चल कर खाना बनाना है काफी लेट हो रहा है। वो एक क्‍वाटर एक घंटा में डकारे अब मुझे उलझन सी होने लगी सोचा नसे में वो है ले ले आज गेयर में , उल्‍टा हुआ वही मेरी बजाने लगे ,लगभग आधा घंटा मेला घूमने के बाद जब वापस घर की तरफ आये तो सारी दुकाने बन्‍द हो गयी थ्‍ाी जहां से सब्‍जी लेनी थी। अब क्‍या होगा चलते है कमरे पर। कमरे पर आकर अपना खना और उनका खाना मैने ही बनाया  दाल चावल और चोखा क्‍या करे कोई सब्‍जी न ले पाने के कारण यही विकल्‍प था। फिर अपने सारे कामों की तरफ नजरें घुमाई  और लम्बी सांस लेते हुए काम शुरू किया, जब  आखों पर नींद का पहरा होने लगा तब  देखा ताे रात के  चार  बज चुके थेे।
                 क्‍या वास्‍तव में यही होती है मदद करने वालो के साथ??????????????????????

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